कुछ पाया था, कुछ खोया था ….!
बस ये सोच के दिल बहुत
रोया था ….!
पर आज ये सोचकर खामोश है हम,
कि जो खोया था क्या सच में
कभी पाया था…
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जनाब बरसों में
आप आये जनाब बरसों में
हमने पी है शराब बरसों में
खूब मोहब्बत है
क्या खूब मोहब्बत है तेरी…
तोड़ा भी हमें छोड़ा भी हमें …
आज होगा हिसाब
तुम कहां थे कहां रहे साहेब
आज होगा हिसाब बरसों में
कब तक बाँटता रहू
मैं कब तक बाँटता रहू ख़ुदको ,
मुझे अपना भी तो हिस्सा रखना चाहिए ….
समन्दर के सफ़र में
समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए!!!
तो क्या करता
ना शाखों ने पनाह दी ना हवाओं ने संभाला
वो पत्ता आवारा न बनता तो क्या करता
ख़ुशी मुझ को
उसकी जीत से होती है ख़ुशी मुझ को,
यही जवाब मेरे पास है अपनी हार का !
जलाने के लिए
सूखे पत्ते की तरह बिखरे थे ए दोस्त,
किसी ने समेटा भी तो जलाने के लिए !
तेरे बारे में पूछते है
लोग आज भी तेरे बारे में पूछते है कहाँ है वो,
मैं बस दिल पर हाथ रख देता हूँ…