कैसा है ये इश्क और कैसा हैं ये प्यार ,जीते-जी जो मुझ से , तुम दूर जा रहे हो..
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जिसे मौका नही मिला
कौन है इस जहान मे जिसे धोखा नही मिला,
शायद वही है ईमानदार जिसे मौका नही मिला…
तुम से बेहतर
तुम से बेहतर तो तुम्हारी निगाहें थीं,
कम से कम बातें तो किया करतीं थीं…
कहाँ खर्च करूँ
कहाँ खर्च करूँ , अपने दिल की दौलत…
सब यहाँ भरी जेबों को सलाम करते हैं…
कोई पुरानी तमन्ना
आँखों से पानी गिरता है , तो गिरने
दीजिये…
कोई पुरानी तमन्ना पिघल
रही होगी…
कम बिकता हूं
छोटे शहर के अखबार जैसा हूं मैं,,
दिल से लिखता हूं, शायद इसलिए कम बिकता हूं..!
मासूमियत खो दी है
फरेबी हूँ, जिद्दी हूँ, और पत्थर दिल भी हूँ ,
मासूमियत खो दी है मैंने, वफा करते करते….
मज़हब पता चला
मज़हब पता चला जो मुसाफ़िर कि लाश का..
चुप चाप आधी भीड़ घरों को चली गयी…!!”
स्वर्ग में सीढ़ी
स्वर्ग में
सीढ़ी लगाने की
अभिलाषा
खत्म हो गयी
चाहे
साथ ही मेरे …..
चाँद की पगडंडी से
देखा हैं अपना वजूद मैंने
अग्नि भेंट होता भी ….
पर मैं
आज भी
ज़िंदा हू
हमेशा ज़िंदा रहूँगा
तेरे दिलो दिमाग अंदर ….!!
काश वो नया
काश वो नया तरीका-ऐ-क़त्ल इज़ाद करें,
मर जाऊ हिचकियों से वो इस कदर याद करें।