ज़िन्दगी की दुआयें

शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे न दो
मैं

कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे न दो

जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने

मुझे दिया
अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे न दो

ऐसा कहीं न हो

के पलटकर न आ सकूँ
हर बार दूर जा के सदायें मुझे न दो

कब मुझ

को ऐतेराफ़-ए-मुहब्बत न था
कब मैं ने ये कहा था सज़ायें

मुझे न दो

हमारी परवाह करते हैं

हम उन्हे रूलाते हैं, जो

हमारी परवाह करते हैं…(माता पिता)
हम उनके लिए रोते हैं, जो

हमारी परवाह नहीं करते…(औलाद )
और, हम उनकी परवाह करते

हैं, जो हमारे लिए कभी नहीं रोयेगें !…(समाज)

मुझे पढने वाला

मुझे पढने वाला पढ़े भी क्या मुझे लिखने वाला लिखे भी

क्या
जहाँ नाम मेरा लिखा गया वहां रोशनाई उलट गई

हकीक़त कहो तो

हकीक़त कहो तो उनको ख्वाब
लगता है ..
शिकायत करो तो उनको मजाक लगता है…
कितने सिद्दत से उन्हें

याद करते है हम
………….
और एक वो है ….जिन्हें ये सब

इत्तेफाक
लगता है………………