करूँ क्या मै फरियाद अपनी ज़ुबो से ,
गिरे टूटकर बिजलियो आसमां से ,
मै अश्क़ों मे सारे जहॉ को बहा दूँ ,
मगर मुझको रोने की आदत नही हैं|
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मुद्दत हुई है
मुद्दत हुई है बिछड़े हुए अपने-आप से…
देखा जो आज तुम को तो हम याद आ गए|
किसी ऐसे को ज़िंदा रख के
किसी ऐसे को ज़िंदा रख के दिखा जिसकी परवाह क़ुदरत ना करे…
और किसी ऐसे से मुहब्बत कर के दिखा जो बदले में मुहब्बत ना करे|
गुर्बत ने मेरे बच्चो को
गुर्बत ने मेरे बच्चो को तहजीब सिखा दी
सहमे हुए रहते हैं शरारत नही करते |
सलीक़ा आ गया है
हम को टालने का शायद तुम को सलीक़ा आ गया है
बात करते तो हो लेकिन , अब तुम अपने नहीं लगते |
ला तेरे पैरों में
ला तेरे पैरों में मरहम लगा दूँ ऐ दोस्त
मेरे दिल को ठोकर मारने से चोट तो आई होगी
किसी को घर से
किसी को घर से निकलते ही मिल गयी मंज़िल,
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा ।
कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िन्दगी जैसे,
तमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा ।
कुछ पेचीदा लफ्जों में
कुछ पेचीदा लफ्जों में मैंने अपनी बात रखी,
जमाना हँसता गया, जज्बात रोते गये…!
यूं न झाकों मेरी रुह में..
यूं न झाकों मेरी रुह में……..
कुछ ख्वाहिशें मेरी
वहाँ बेनकाब रहती हैं ।
मैं वक़्त की दहलीज़ पे
मैं वक़्त की दहलीज़ पे ठहरा हुआ पल हूँ,
क़ायम है मेरी शान कि मैं ताजमहल हूँ !