रब के फ़ैसले पर भला कैसे करुँ शक,
सजा दे रहा है ग़र वो कुछ तो गुनाह रहा होगा !!
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लफ़्ज़ों से ग़लतफ़हमियाँ
लफ़्ज़ों से ग़लतफ़हमियाँ बढ़ रहीं है.
चलो ख़ामोशियों में बात करते हैं.
चाहूंगा मैं तुझे
चाहूंगा मैं तुझे साँझ सवेरे !!
क्योंकि दोपहर को मुझे बैंक की लाइन में लगना है।
पाया भी उन को
पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी हो रहे,
इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं…
हाथ पकड़ कर
हाथ पकड़ कर रोक लेते अगर,तुझपर
ज़रा भी ज़ोर होता मेरा,
ना रोते हम यूँ तेरे लिये, अगर हमारी
ज़िन्दगी में तेरे सिवा कोई ओर होता !
इश्क की हिमाकत
इश्क की हिमाकत जो उनसे कर बैठे यूँ ही हम खुदसे बिछड़ बैठे !!!
कोई उम्मीद बर नहीं
कोई उम्मीद बर नहीं आती
नयी करेंसी नज़र नहीं आती
हम वहाँ हैं जहाँ से कैशियर को भी
लाइन हमारी नज़र नहीं आती
आगे आती थी खाली जेब पर हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती
मैं रुठा जो
मैं रुठा जो तुमसे तुमने हमें मनाया भी नहीं ,
अपनी मोहब्बत का कुछ हक जताया भी नहीं !!
अजीब तरह से
अजीब तरह से गुजर रही है जिंदगी,
सोचा कुछ, किया कुछ, हुआ कुछ और मिला कुछ !!
जिसे हम सबसे ज्यादा
जिसे हम सबसे ज्यादा चाहते है,
उसीमें सबसे ज्यादा ताकत होती है,
हमें रुलाने की…