बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता,
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता..
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बेहोश आहिस्ता आहिस्ता…
कि आ रहा है अब होश हमें आहिस्ता आहिस्ता,
इश्क में जब हुए हम बेहोश आहिस्ता आहिस्ता…
तुझसे नाराज़ होकर
तुझसे नाराज़ होकर कहाँ जाएँगे…
रोएँगे तड़पेंगे फिर लौट आएँगे
ये जो तेरा
ये जो तेरा होकर भी ना होने का अहसास है…
बस ये अधूरापन ही मुझे जीने नहीं देता|
सफ़र में धूप तो होगी
सफ़र में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो..
सभी है भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो.!
बस इतना ही
बस इतना ही जाना है मुझे तुमने
दूर ही रहो जितना, जेहन में उतर आऊंगा|
तुम दूर भी
तुम दूर भी हो पर लगता है यही हो
तुम कहो इश्क़ में तुम्हारा क्या हाल है|
ये सुलगते जज्बात
ये सुलगते जज्बात दे रहे है गवाही
क्यों तुम भी हो न इस इश्क़ के भवर में
और कितना परख़ोगे
और कितना परख़ोगे तुम मुझे?
क्या इतना काफ़ी नहीं कि मैनें तुम्हें चुना है।
तुम इतने कठिन क्यूँ हो
तुम इतने कठिन क्यूँ हो की मैं तुम्हे समझ नहीं पाता,
थोड़े से सरल हो जाओ सिर्फ मेरे लिए !!