ख़त जो लिखा मैनें इंसानियत के पते पर !
डाकिया ही चल बसा शहर ढूंढ़ते ढूंढ़ते !
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ख़त जो लिखा मैनें इंसानियत के पते पर !
डाकिया ही चल बसा शहर ढूंढ़ते ढूंढ़ते !
अगर तुम्हें भूलाना मुमकिन होता तो कब के भूला दिये होते,
यूँ पैरों में मोच होते हुए भी चलना किसको पसंद है !!
प्यार से चाहे सारे अरमान माँग लो ,
रूठकर चाहे मेरी मुस्कान माँग लो,
तमन्ना ये है कि ना देना कभी धोखा,
फिर हँसकर चाहे मेरी जान माँग लो…
भरी महफ़िल में इश्क़ का जिक्र हुआ
हमने तो सिर्फ़ आप की ओर देखा
और लोग वाह-वाह कहने लगे…
बड़ा खूबसूरत सा रिश्ता है तेरा-मेरा,
ना तुमने कभी बाँधा,ना मैंने कभी छोड़ा !!
बिना आहट के इन आँखो से दिल में उतरते हो तुम
वाह..! क्या लाजबाब इश्क करते हो तुम..
उसे बस तब याद आता हूँ मैं,
जब कोई दूसरा उसके पास नहीं होता !!
किस्मत में रातों की नींद नहीं तो क्या हुआ,
जब मौत आएगी तो जी भर के सो लेंगे
शब के साथ गहरे होते जाते है…तेरे ख्याल भी…
इंतिजार-ए-सहर तो नही…पर उस वक़्त….
हर ख्याल तेरा….बेशकीमती होता है।
अगर दिल भर गया हो तो मना करने में कैसा डर,
प्यार में बेवफाओं पर मुकदमा थोड़े होता है …