ऐ खुदा अगर तेरे पेन की स्याही खत्म हो गयी हो
तो मेरा लहू लेले
बस….यु कहानिया अधूरी न लिखा कर.
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कभी जरूरत पड़े तो
कभी जरूरत पड़े तो आवाज दे देना हमें,
मैं गुजरा हुआ वक्त नहीं जो वापस न आ सकूँ”…
कोई कितना भी
कोई कितना भी हिम्मत वाला क्युँ ना हो “साहिब”…
रुला ही देती है किसी खास “इंसान” की कमी कभी_कभी …………….
सजा देनी हमे भी
सजा देनी हमे भी आती है … ओ बेखबर,
पर तू तकलीफ से गुज़रे, ये हमे मंजूर नहीं
तुम ना लगा पाओगे
तुम ना लगा पाओगे अंदाजा मेरी तबाही का,
तुमने देखा ही कहाँ है मुझे शाम होने के बाद….
ये लफ़्ज़ों की शरारत है
ये लफ़्ज़ों की शरारत है, ज़रा संभाल कर लिखना तुम;
मोहब्बत लफ्ज़ है लेकिन ये अक्सर हो भी जाती है।
अजीब सी उलझन
अजीब सी उलझन भरी है इश्क की राहें ।
बेचारा आशिक कितना सम्भल के चले ।
मैं तुझमें ही
मैं तुझमें ही छुप छुप के तेरी आँखें पढता हूँ….
कौन तुझे यूँ प्यार करेगा जैसे मैं करता हूँ|
कुछ बातों के मतलब
कुछ बातों के मतलब हैं, और कुछ मतलब की बातें,
जब से फर्क समझा,साहेब जिंदगी आसान हो गई।
जाने क्या था..
जाने क्या था.. जाने क्या है जो मुझसे छूट रहा है..
यादें कंकड़ फेंक रही हैं और दिल अंदर से टूट रहा है|