ऐ खुदा अगर

ऐ खुदा अगर तेरे पेन की स्याही खत्म हो गयी हो
तो मेरा लहू लेले
बस….यु कहानिया अधूरी न लिखा कर.

कोई कितना भी

कोई कितना भी हिम्मत वाला क्युँ ना हो “साहिब”…
रुला ही देती है किसी खास “इंसान” की कमी कभी_कभी …………….

मैं तुझमें ही

मैं तुझमें ही छुप छुप के तेरी आँखें पढता हूँ….
कौन तुझे यूँ प्यार करेगा जैसे मैं करता हूँ|

जाने क्या था..

जाने क्या था.. जाने क्या है जो मुझसे छूट रहा है..

यादें कंकड़ फेंक रही हैं और दिल अंदर से टूट रहा है|