आग पर चलना पड़ा है तो कभी पानी पर
गोलियां खाई हैं फ़नकारो नै पेशानी पर
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
आग पर चलना पड़ा है तो कभी पानी पर
गोलियां खाई हैं फ़नकारो नै पेशानी पर
खुबसूरती से धोका ना खाईए साहब…
तलवार कितनी भी खुबसूरत हो
मांगती तो खून हि है…
हर आरज़ू मेरी ख़त्म हुई एक जुस्तजू पे आकर………!फिर चाहे इंतज़ार-ए-इश्क़ हो; या हो दीदार तेरा……….!!
मुझे तूं कुछ यूँ चाहिए……
जैसे रूह को शुकुन चाहिए.
बदनसीब मैं हूँ या तू हैं, ये तो वक़्त ही बतायेगा…बस इतना कहता हूँ,अब कभी लौट कर मत आना…
मौसम की पहली बारिश का शौक तुम्हें होगा.
हम तो रोज किसी की यादो मे भीगें रहते है..!
उनका इल्ज़ाम लगाने का अन्दाज़ गज़ब था…
हमने खुद अपने ही ख़िलाफ,गवाही दे दी..
ये मुहब्बत की तोहीन है…
चाँद देखूँ तुम्हें देखकर…
चूम लेता है झूठे तमगे
जीत के भी हार जाता है
मौत तो कई दफा होती है
जनाजा मगर एक बार जाता है|
मिल सके आसानी से , उसकी ख्वाहिश किसे है? ज़िद तो उसकी है … जो मुकद्दर में लिखा ही नहीं!!!!!