कोई तो खबर लो मेरे दुश्मन- ए- जान की
कई रोज़ से मेरे आँगन में पत्थर क्यू नहीं आये
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कोई तो खबर लो मेरे दुश्मन- ए- जान की
कई रोज़ से मेरे आँगन में पत्थर क्यू नहीं आये
जब ख़ामोश आँखों से बात होती है;
ऐसे ही मोहब्बत की शुरुआत होती है;
तुम्हारे ही ख्यालों में खोये रहते हैं;
पता नहीं कब दिन और कब रात होती है|
हमारी कद्र उनको होगी तन्हाईयो में एक दिन,
अभी तो बहुत लोग हैं उनके पास दिल्लगी करने को….!!
कमाल का ताना दिया आज किसी ने मुझे….
की लिखते तो खूब हो कभी समझा भी दिया करो…
सारा बदन अजीब से खुशबु से भर गया
शायद तेरा ख्याल हदों से गुजर गया |
नही हो सकती ये मोहब्ब्त तेरे सिवा किसी और से,
बस इतनी सी बात को आप समझते क्यों नहीं ..
लिख देना ये अल्फाज मेरी कबर पे…!!
मौत अच्छी है मगर दिल का लगाना अच्छा नहीं…!!
कोई चाँद से मोहब्बत करता है;
कोई सूरज से मोहब्बत करता है;
हम उनसे मोहब्बत करते हैं;
जो हमसे मोहब्बत करते हैं।
बादलों से कह दो अब इतना भी ना बरसे….
अगर मुझे उनकी याद आ गई,
तो मुकाबला बराबरी का होगा….
कुछ लोग आए थे मेरा दुख बाँटने,
मैं जब खुश हुआ तो खफा होकर चल दिये…!!!