मेरे वजूद पे
उतरी हैं लफ़्ज़ की सूरत,,
भटक रही थीं ख़लाओं में ये सदाएँ कहीं।।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मेरे वजूद पे
उतरी हैं लफ़्ज़ की सूरत,,
भटक रही थीं ख़लाओं में ये सदाएँ कहीं।।
अधूरी हसरतों का आज भी इलज़ाम है तुम
पर…!!
अगर तुम चाहती तो….. ये मोहब्बत ख़त्म ना होती….!!
इश्क़ ” का बँटवारा , रज़ामन्दी से हुआ …
चमक उन्होंने
बँटोरी , तड़प हम ले आये !
करने गये थे उनसे तगाफुल का हम गिला..
की एक ही निगाह
कि हम खाक हो गये..!
ज़िंदगी हमारी यूँ सितम हो गयी;
ख़ुशी ना जाने कहाँ दफ़न हो गयी;
बहुत लिखी खुदा ने लोगों की मोहब्बत;
जब आयी हमारी बारी तो
स्याही ही ख़त्म हो गयी
आईना देख के तसल्ली
हुई
कोई तो है इस घर मे
जो जानता है हमे
किसी को न पाने से ज़िंदगी
खत्म नहीं हो जाती,
पर किसी को पा के खो देने के बाद कुछ बाकी
नहीं बचता
आज तोहफा लाने निकला था शहर में तेरे लिए,
कम्बखत खुद से सस्ता कुछ ना मिला।।
बहुत अमीर होती है ये शराब
की बोतलें…
पैसा चाहे जो भी लग जाए पर सारे ग़म ख़रीद
लेतीं है…
इतनी दूरियां ना बढ़ाओ थोड़ा सा याद ही कर लिया करो, कहीं ऐसा ना हो कि तुम-बिन जीने की आदत सी हो जाए…
कसम की कोई ज़रुरत नहीं मुहब्बत को
तुझे कसम है, खुदा को भी दरमियां रखना