ज़िंदगी हमारी यूँ

ज़िंदगी हमारी यूँ सितम हो गयी;
ख़ुशी ना जाने कहाँ दफ़न हो गयी;
बहुत लिखी खुदा ने लोगों की मोहब्बत;
जब आयी हमारी बारी तो

स्याही ही ख़त्म हो गयी

आईना देख के

आईना देख के तसल्ली

हुई
कोई तो है इस घर मे
जो जानता है हमे

किसी को न पाने से ज़िंदगी

खत्म नहीं हो जाती,
पर किसी को पा के खो देने के बाद कुछ बाकी

नहीं बचता

अमीर होती है

बहुत अमीर होती है ये शराब
की बोतलें…

पैसा चाहे जो भी लग जाए पर सारे ग़म ख़रीद
लेतीं है…

जीने की आदत

इतनी दूरियां ना बढ़ाओ थोड़ा सा याद ही कर लिया करो, कहीं ऐसा ना हो कि तुम-बिन जीने की आदत सी हो जाए…