बचपन में जब चाहा हँस लेते थे,
जहाँ
चाहा रो सकते थे.
अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए,
अश्कों को तनहाई ..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बचपन में जब चाहा हँस लेते थे,
जहाँ
चाहा रो सकते थे.
अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए,
अश्कों को तनहाई ..
If you
don’t like who you are and where you are, don’t worry about it
because you’re not stuck either with who you are or where you
are. You can grow. You can change. You can be more than you
are. ….
…..
………?
मुझे भी ज़िन्दगी में तुम ज़रूरी
मत समझ लेना..
सुना है तुम ज़रूरी काम अक्सर
भूल जाते हो..
रोज हर मोड़ पर तु मुझे मिल जाती है.
ऐ उदासी, कहीं तु भी मेरी दीवानी तो नही है.
तुम जरा हाथ मेरा थाम के देखो तो सही लोग
जल जाएंगे महफ़िल में चिरोगों की तरह
भूलना भी हैं…जरुरी याद रखने के लिए..
पास रहना है..तो थोडा दूर होना चाहिए..
इन्सानियत की रौशनी गुम हो गई कहाँ…
साये हैं आदमी के मगर आदमी कहाँ..
फ़ुटपाथ पर सोने वाले हैरान हैं आती-जाती गाड़ियों से…
कम्बख़्त जिनके पास घर हैं…वो घर क्यूँ नहीं जाते…
लाख रख दो रिश्तों की दुनिया तराजु पर…
सारे रिश्तों का वज़न बस आधा निकलेगा…
सब की चाहत एक तरफ़ हो जाए फिर भी…
माँ का प्यार नौ महीने ज्यादा निकलेगा…
सुबह से संदेशे तो बहुत आये लेकिन मेहमान कोई नही आया. सोचता हूँ ड्राइंग रूम से सोफा हटा दूं. या ड्राइंग रूम का कांसेप्ट बदलकर वहां स्टडी रूम बना दूं.
दो दिन से व्हाट्स एप और एफबी के मेसेंजर पर मेसेज खोलते, स्क्रॉल करते और फिर जवाब के लिए टाइप करते करते दाहिने हाथ के अंगूठे में दर्द होने लगा है. संदेशें आते जा रहे हैं. बधाईयों का तांता है . लेकिन मेहमान नदारद है .
ये है आज के दौर की दीवाली.
मित्रों, घर के आसपास के पडौसी अगर छोड़ दें तो त्यौहार पर मिलने जुलने का रिवाज़ खत्म हो चला है. पैसे वाले दोस्त और अमीर किस्म के रिश्तेदार मिठाई या गिफ्ट तो भिजवाते है लेकिन घर पर बेल ड्राईवर बजाता है. वो खुद नही आते.
दरअसल घर अब घर नही रहा. ऑफिस के वर्क स्टेशन की तरह घर एक स्लीप स्टेशन है. हर दिन का एक रिटायरिंग बेस. आराम करिए, फ्रेश हो जाईये. घर अब सिर्फ घरवालों का है. घर का समाज से कोई संपर्क नही है. मेट्रो युग में समाज और घर के बीच तार शायद टूट चुके हैं. हमे स्वीकार करना होगा कि ये बचपन वाला घर नही रहा. अब घर और समाज के बीच में एक बड़ा फासला सा है.
वैसे भी शादी अब मेरिज हाल में होती है. बर्थडे मैक डोनाल्ड या पिज़्ज़ा हट में मनाया जाता है. बीमारी में नर्सिंग होम में खैरियत पूछी जाती है. और अंतिम आयोजन के लिए सीधे लोग घाट पहुँच जाते है.
सच तो ये है कि जब से डेबिट कार्ड और एटीएम आ गये है तब से मेहमान क्या …चोर भी घर नही आते.
मे सोचता हूँ कि चोर आया तो क्या ले जायेगा…फ्रिज, सोफा, पलंग, लैप टॉप..टीवी…कितने में बेचेगा इन्हें चोर? अरे री सेल तो olx ने चौपट कर दी है. चोर को बचेगा क्या ? वैसे भी अब कैश तो एटीएम में है इसीलिए होम डेलिवरी वाला भी पिज़ा के साथ डेबिट मशीन साथ लाता है.
सच तो ये है कि अब सवाल सिर्फ घर के आर्किटेक्ट को लेकर ही बचा है.
जी हाँ….क्या घर के नक़्शे से ड्राइंग रूम का कांसेप्ट खत्म कर देना चाहिये ?