मेरी दहलीज़ पर आ कर रुकी है
हवा_ऐ_मोहब्बत,
मेहमान नवाज़ी का शौक भी है
उजड़ जाने का खौफ भी…!!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मेरी दहलीज़ पर आ कर रुकी है
हवा_ऐ_मोहब्बत,
मेहमान नवाज़ी का शौक भी है
उजड़ जाने का खौफ भी…!!!
गुजर रहा था तेरी गली से सोचा उन
खिड़कियों को सलाम कर लूँ…
जो कभी मुझे देख कर खुला करती
थी..
टिकटें लेकर बैठें हैं मेरी ज़िन्दगी की कुछ लोग…….
साहेबान…….
तमाशा भी भरपूर होना चाहिए……
निमा की कलम से………..
अजीब सी बस्ती में ठिकाना है
मेरा जहाँ लोग मिलते कम,
झांकते ज़्यादा है…
किसी न किसी पे किसी को ऐतबार हो जाता है,
अजनबी कोई शख्स यार हो जाता है,
खूबियों से नहीं होती मोहब्बत सदा,
खामियों से भी अक्सर प्यार हो जाता है !!
अपने जलने मे किसी को नही करता शरीक !!
रात होते ही शमा को बुझा देता हूँ मै !!
मोहब्बत से फतैह करो लोगो के दिलो को,
जरुरी तो नही सिकन्दर की तरह तलवार रखी जाये.
Mohabbat ke kaafile ko kuch der to rok lo
aate hain hum bhi paanv se kaante nikaalkar
आधे से कुछ ज्यादा है, पूरे से कुछ कम…
कुछ जिंदगी… कुछ गम, कुछ इश्क… कुछ हम…
दिल की धडकनों में अचानक ये इज़ाफा कैसा…..
उसके होंठो पे कहीं नाम हमारा तो नही.