देखा है मैंने

देखा है मैंने बड़ा इतराये फिरते थे वो अपने हुस्न-ए-
रुखसार पर …
बड़े मायूस हो गए है यारो….
जबसे देखी है अपनी तस्वीर कार्ड-ए-आधार पर

मै इश्क का

मै इश्क का मुफ़्ती तो नहीं..
मगर ये मेरा फतवा है।।।।
जो राह में छोड़ जाए…
वो काफ़िर से भी बदतर है।।।।

अपना ही चेहरा

बीवी, बच्चे, सड़कें, दफ्तर और तनख्वाह के चक्कर में
मैं घर से अपना ही चेहरा पढ़कर जाना भूल गया

यहीं रही है

यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है

किसी शहर के

किसी शहर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
तभी तलक ये करें बसेरा दरख्‍़त जब तक हरा भरा है