पलकों पे रुक गया है समन्दर खुमार का,
कितना अजब नशा है तेरे इंतज़ार का..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
पलकों पे रुक गया है समन्दर खुमार का,
कितना अजब नशा है तेरे इंतज़ार का..
कल तन के चलते थे जो आपने शान ओ सौकत पर..
शम्मा तक नही जलती आज उनके कुर्बत पर ।
यादे रब सिकंदर के हौसले तो आली थे..
जब गया था दुनिया से दोनों हाथ खली थे ।।
वक्त के पंजे से बचकर कोई कहाँ गया है ।
जरा मिट्टी से तो पूछो सिकंदर कहाँ है।
तमाम जिस्म को आँखें बनाकर राह तको
तमाम खेल मोहब्बत में इन्तिज़ार का है………..
मलहम नही तो हमारे जख्मो पर नमक ही लगा दे.
हम तो तेरे छूने से ही ठीक हो जायेंगे ..
उस रात से मैंने सोना ही छोड़ दिया ‘
दोस्त’…
जिस रात उस ने कहा के सुबह आंख खुलते ही मुझे भूल
जाना…
काश पलट के पहुच जाउ बचपन की उन वादीओ में
जहा ना कोई ज़रूरत थी
ओर ना कोई ज़रूरी था…
सुना है काफी पढ़
लिख गए हो तुम,
कभी वो बी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते !!
सामान बाँध लिया है मैंने
अब बता ओ गालिब…
कहाँ रहते हैं वो लोग
जो कहीं के नहीं रहते…