मत दिखाओ हमें

मत दिखाओ हमें, तुम ये मुहब्बत का बहीखाता , हिसाब-ए-इश्क़ रखना, हम दीवानों को नहीं आता ….

कितनी है कातिल ज़िंदगी

कितनी है कातिल ज़िंदगी की ये आरज़ू, मर जाते हैं किसी पे लोग जीने के लिये।

अक्ल बारीक हुई

अक्ल बारीक हुई जाती है, रूह तारीक हुई जाती है।

एक ही चौखट पे

एक ही चौखट पे सर झुके तो सुकून मिलता है भटक जाते है वो लोग जिनके हजारों खुदा होते है।

हो सके तो

हो सके तो दिलों में रहना सीखो, गुरुर में तो हर कोई रहता है…

न रुकी वक्त की गर्दिश

न रुकी वक्त की गर्दिश और न जमाना बदला, पेड़ सुखा तो परिंदों ने ठिकाना बदला !!

आँखों की दहलीज़ पे

आँखों की दहलीज़ पे आके सपना बोला आंसू से… घर तो आखिर घर होता है… तुम रह लो या मैं रह लूँ….

आते हैं दिन हर किसी के

आते हैं दिन हर किसी के बेहतर, जिंदगी के समंदर में हमेशा तूफान नही रहते।

अकेले आये थे

अकेले आये थे और अकेले ही जाना है, फिर ये अकेला रहा क्यूँ नहीं जाता..

हर पल खुश रहूं

हर पल खुश रहूं ऐसा हो नहीं सकता, यादें भी आखिर कोई चीज़ हुआ करती हैं|

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