ख़त में मेरे ही

ख़त में मेरे ही ख़त के टुकड़े थे….. और मैं समझ गया के मेरे ख़त का जवाब आया है

बहुत ही सिद्दत से

बहुत ही सिद्दत से छोड देंगे तुमको, हम इधर आखिरी सांस लेगे और तुम आजाद।।

कुछ रिश्तों के

कुछ रिश्तों के नाम नहीं होते, इसलिए लोग उसे बदनाम कर देते हैं।।

मेरा होकर भी

मेरा होकर भी गैर की जागीर लगता है,दिल भी साला मसला-ऐ-कश्मीर लगता है…

अज़ब माहौल है

अज़ब माहौल है मेरे ‘मुल्क’ का, मज़हब थोपा जाता है,’इश्क’ रोका जाता है।।

समझा दो अपनी यादों को

समझा दो अपनी यादों को तुम ज़रा… दिन-रात तंग करती हैं कर्ज़दार की तरह….

मुफ्त में नहीं आता

मुफ्त में नहीं आता, यह शायरी का हुनर…. इसके बदले ज़िन्दगी हमसे, हमारी खुशियों का सौदा करती है…!!

ऐ ज़िंदगी अब तू ही

ऐ ज़िंदगी अब तू ही रुठ जा मुझसे, ये रुठे हुए लोग मुझसे मनाए नहीं जाते…|

मत सोना किसी के

मत सोना किसी के कंधे पे सर रख कर जब वो बिछड़ते है तो तकिये पे भी नींद नहीं आती.

जो मिलते हैं

जो मिलते हैं, वो बिछड़ते भी हैं, हम नादान थे…!! एक शाम की, मुलाकात को, जिंदगी समझ बैठे…!!

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