छत टपकती है उसके कच्चे घर की, वो किसान फिर भी बारिश की दुआ करता है
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ख़्वाहिशों का काफिला
ख़्वाहिशों का काफिला भी अजीब ही है , अक्सर वहीँ से गुज़रता है जहाँ रास्ता न हो .
वोह कबसे तलवार लिये
वोह कबसे तलवार लिये मेरे पीछे भाग रही है… मैने तो मजाक मै कहा था की… दिल चीर के दैख… तेरा ही नाम होगा..
हम तो फना हो गए
हम तो फना हो गए उनकी आँखे देखकर ग़ालिब ना जाने वो आइना कैसे देखती होंगी !
बड़ा अरमान था
बड़ा अरमान था तेरे साथ जीवन बिताने का; शिकवा है बस तेरे खामोश रह जाने का; दीवानगी इससे बढ़कर और क्या होगी? आज भी इंतज़ार है तेरे आने का!
तड़प के देखो
तड़प के देखो किसी की चाहत में; तो पता चले कि इंतज़ार क्या होता है; यूँ ही मिल जाये अगर कोई बिना तड़पे; तो कैसे पता चले के प्यार क्या होता है|
ला तेरे पेरों पर
ला तेरे पेरों पर मरहम लगा दूं… कुछ चोट तो तुझे भी आई होगी मेरे दिल को ठोकर मार कर..
न मेरा एक होगा
न मेरा एक होगा, न तेरा लाख होगा, न तारिफ तेरी होगी, न मजाक मेरा होगा. गुरुर न कर “शाह-ए-शरीर” का, मेरा भी खाक होगा, तेरा भी खाक होगा !!!
पहचान कहाँ हो पाती है
पहचान कहाँ हो पाती है, अब इंसानों की!! अब तो गाड़ी, कपडे और जूते लोगों की औकात तय करते है!!!
में तो चिराग हू
में तो चिराग हू तेरे आशियाने का कभी ना कभी तो बुझ जाऊंगा … आज शिकायत है तुझे मेरे उजाले से कल अँधेरे में बहुत याद आऊंगा …