बदल जाओ भले तुम पर ये ज़हन में रखना..कही
पछतावा ना बन जाए हम से बेरुखी इतनी.
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बदल जाओ भले तुम पर ये ज़हन में रखना..कही
पछतावा ना बन जाए हम से बेरुखी इतनी.
शुक्र है कि ये दिल…सिर्फ़ धड़कता है…अगर
बोलता…तो कयामत आ जाती….
कोशिश कर, हल निकलेगा
आज नही तो, कल निकलेगा।
अर्जुन के तीर सा निशाना साध,
जमीन से भी जल निकलेगा ।
मेहनत कर, पौधो को पानी दे,
बंजर जमीन से भी फल निकलेगा ।
ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे,
फौलाद का भी बल निकलेगा ।
जिन्दा रख, दिल में उम्मीदों को,
समन्दर से भी गंगाजल निकलेगा ।
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की,
जो है आज थमा-थमा सा, वो चल निकलेगा ।
मुश्किलें केवल बहतरीन लोगों
के हिस्से में ही आती हैं…!!
क्यूंकि वो लोग ही उसे बेहतरीन
तरीके से अंजाम देने की ताकत
रखते हैं..!!
“रख हौंसला वो मंज़र भी आयेगा;
प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा..!
थक कर ना बैठ ए मंजिल के
मुसाफ़िर;
मंजिल भी मिलेगी और
जीने का मजा भी आयेगा…!!”
सरे बदन को आँखें बनाकर राह तको..
…
के सारा खेल ये मोहब्बत में, इंतज़ार का है ।
रास्ता ‘खूबसूरत’ है
तो
पता कीजिये..
किस ‘मंज़िल’ की तरफ जाता
है!
लेकिन,
अगर ‘मंज़िल’ खूबसूरत हो तो
कभी रास्ते की ‘परवाह’
मत कीजिये |
आतिश ए राख हूँ बेशक बुझा बुझा सा
लगता हूँ मैं….
मेरे जख्मों को हवा मत देना जमाना फूंक
सकता हूँ मैं…
सुनो
तुम मेरी ज़िंदगी में शामिल हो ऐसे,
–
–
मंदिर के दरवाज़े पर मन्नत के
धागे हों जैसे..!!
जाने कितने झूले थे फाँसी पर, कितनो ने गोली खायी
थी
क्यों झूठ बोलते हो साहब , की चरखे से आजादी आई थी
जहाँ दूसरे को समझाना मुश्किल हो जाये,
वहाँ खुद को समझा लेना बहतर होता है ।