उसके जैसी कोई दूसरी कैसे हो सकती है,
अब तो वो खुद भी खुद के जैसी नहीं रही !!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
उसके जैसी कोई दूसरी कैसे हो सकती है,
अब तो वो खुद भी खुद के जैसी नहीं रही !!
आ बैठ मेरे पास
बरबाद अब कुछ
रातें करते हैं
बन जा तू शब्द मेरे
फिर दिल की,
दिल से
कुछ बातें
करते हैं…….
जो कोई समझ न सके वो बात हैं हम,
जो ढल के नयी सुबह लाये वो रात हैं हम,
छोड़ देते हैं लोग रिश्ते बनाकर,
जो कभी न छूटे वो साथ हैं हम।
हो सकता है की मैं तेरी खुशियाँ बाँटने ना आ सकू,
गम आये तो खबर कर देना वादा है की सारे ले जाऊँगा…
मुझे मालूम है उड़ती पतंगों की रवायत..
गले मिलकर गला काटूँ मैं वो मांझा नहीं..
नहीं ज़रूरत मुझे तुम्हारी अब,
ख्यालात तुम्हारे काफ़ी है…..
तुम क्या जानो इस मस्ती को,
अहसास तुम्हारे काफ़ी है……
धीमी-धीमी नस चलें, रुक-रुक करके श्वास।
जीने की अब ना रही, थोड़ी सी भी आस।।
इक तमन्ना के लिए फिरती है सहरा सहरा……!!
ज़िंदगी रोज़ कोई ख़्वाब नया लिखती है…!!
बेजुबान पत्थर पे लदे है करोंडो के गहने मंदिरो में..!
उसी देहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हें हाथों को देखा है..!!!
यूँ तो जिंदगी तेरे सफर से शिकायतें बहुत थी…
दर्द जब दर्ज कराने पहुंचे तो कतारें बहुत थी…!!