कुछ इस कदर बीता है मेरे बचपन का सफर दोस्तों
मैने किताबे भी खरीदी तो अपने खिलौने बेचकर
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कुछ इस कदर बीता है मेरे बचपन का सफर दोस्तों
मैने किताबे भी खरीदी तो अपने खिलौने बेचकर
इक मुद्दत से कोई तमाशा नहीं देखा बस्ती ने
कल बस्ती वालों ने मिल-जुलकर मेरा घर फूंक दिया
नशे में चूर होगी तू किसी ग़ैर की बांहों में,
दबाकर लकड़ियों में जब मुझे दुनिया जलायेगी
इस दौर ए तरक्की में…जिक्र ए मुहब्बत.
यकीनन आप पागल हैं…संभालिये खुद को
हँसते हुए चेहरों को ग़मों से आजाद ना समझो,
मुस्कुराहट की पनाहों में हजारों दर्द होते हैं!
देखेंगे अब जिंदगी चित होगी या पट,
हम किस्मत का सिक्का उछाल बैठे हैं।
तंग सी आ गयी है सादगी मेरी मुझसे
ही
के हमें भी ले डूबे कोई अपनी अवारगी में..!!
अब इस से बढ़कर क्या हो विरासत फ़कीर की..
बच्चे को अपनी भीख का कटोरा तो दे गया..
चल पड़ा हूँ मगर दिल से ये चाहता हूँ..
उठ के मुझे वो रोक ले और रास्ता ना दे..
तुझसे मिलता हूँ तो सोच में पड़ जाता हूँ..
के वक्त के पाँव में जंजीर पह्नाऊ कैसे..