लगने दो आज महफ़िल

लगने दो आज महफ़िल, चलो आज
शायरी की जुबां बहते हैं
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तुम उठा लाओ “ग़ालिब” की किताब,हम अपना
हाल-ए-दिल कहते हैं.|

लत एसी लगी है

लत एसी लगी है की तेरा नशा मुझसे छोड़ा नहीं जाता,
अब तो हकीमों का कहना है की एक बूंद इश्क भी जानलेवा होगा !!

कांच के टुकड़े

कांच के टुकड़े बनकर बिखर गयी है
ज़िन्दगी मेरी…
किसी ने समेटा ही नहीं…
हाथ ज़ख़्मी होने के डर से…

ना हमारी चाहत

ना हमारी चाहत इतनी सस्ती है ना ही नफरत,
हम तो ख़ुदा के वो बंदे है जो बस दुआओं में ही मिलते है !!