लिखते रहे हैं तुम्हे रोज ही मगर ख्वाहिशों के ख़त कभी भेजे ही नही!
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स्याही थोड़ी कम पड़ गई
स्याही थोड़ी कम पड़ गई, वर्ना किस्मत , तो अपनी भी खूबसूरत लिखी गई थी।
आज भी रखते हैं
आज भी रखते हैं हम साँसों में उनको शामिल, जो भूल गया हमारे सीने को रवानी देकर |
उसी का शहर
उसी का शहर, वही खुदा और वहीं के गवाह… मुझे यकीन था, कुसूर मेरा ही निकलेगा |
मुहँ खोलकर तो
मुहँ खोलकर तो हँस देता हूँ मैं हर किसी के साथ….. लेकिन दिल खोलकर हंसे मुझे ज़माने गुज़र गए !!
फिर छोटी सी
फिर छोटी सी मुलाकात हो गई, दिल जितना खुश हो उतनी बात हो गई।।
अगर प्यार है
अगर प्यार है तो शक़ कैसा अगर नहीं है तो हक़ कैसा..
बस तेरे ख़याल ही
बस तेरे ख़याल ही तो हैं मेरे पास, वरना कौन कमबख्त सूनी राहों पर मुस्कुराता है।।
मैं कोई छोटी सी
मैं कोई छोटी सी कहानी नहीं था, बस पन्ने ही जल्दी पलट दिए उसने।।
मेरे शब्दो को
मेरे शब्दो को इतनी शिद्दत से ना पढा करो, कुछ याद रह गया तो हमे भूल नही पाओगे !!