जब कभी खुद की
हरकतों पर शर्म आती है …..
चुपके से भगवान को भोग खिला देता
हूँ …..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
जब कभी खुद की
हरकतों पर शर्म आती है …..
चुपके से भगवान को भोग खिला देता
हूँ …..
यूँ ना देखा करो ….खुदा के लिए ,
मोहब्बत बढ़ गई तो मुसीबत हो जाएगी…
दिल का राज है
लेकिन तुम्है बतला रहा हूँ मैँ “”
“” जिसे खुद भी नही मालुम उसी को चाह रहा हूँ…
दिल को बेचैन सा करती है तुम्हारी आंखें…! •
रात को देर तक तुम मुझे सोचा ना करो..
दिल किसी से तब ही लगाना जब दिलों को पढ़ना सीख लो, हर एक चेहरे की फितरत मैं वफादारी नहीं होती.
कैसा है ये इश्क और कैसा हैं ये प्यार ,जीते-जी जो मुझ से , तुम दूर जा रहे हो..
कौन है इस जहान मे जिसे धोखा नही मिला,
शायद वही है ईमानदार जिसे मौका नही मिला…
तुम से बेहतर तो तुम्हारी निगाहें थीं,
कम से कम बातें तो किया करतीं थीं…
कहाँ खर्च करूँ , अपने दिल की दौलत…
सब यहाँ भरी जेबों को सलाम करते हैं…
मज़हब पता चला जो मुसाफ़िर कि लाश का..
चुप चाप आधी भीड़ घरों को चली गयी…!!”