राज ए उल्फत

राज ए उल्फत का तजूरबा तो हो

तेरा दिल मुझपे आशियाना तो हो

चांद निकलेगा रोज मेरे

घर में हुस्न जैसा कोई आईना तो हो |

न जाने कब

न जाने कब खर्च हो गये , पता ही न चला….!
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वो लम्हे , जो छुपाकर रखे थे “जीने के लिए”…!!