मेरे वजूद को

मेरे वजूद को दामन से झाड़ने वाले नासमझ,

जो तेरी आखिरी मंजिल है वो ही मिट्टी हूँ मैं…

मैं पेड़ हूं

मैं पेड़ हूं हर रोज़ गिरते हैं पत्ते मेरे ,फिर भी हवाओं से,,
बदलते नहीं रिश्ते मेरे