घड़ी घड़ी वो हिसाब करने बैठ जाते है…
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जबकि उनको पता है, जो भी हुआ, बेहिसाब हुआ है..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
घड़ी घड़ी वो हिसाब करने बैठ जाते है…
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जबकि उनको पता है, जो भी हुआ, बेहिसाब हुआ है..
खूब हूँ वाकिफ दुनिया से,
बस खुद से अनजान हूँ..
कितना किराया लोगे ऐ किराए के कातिलों,
मुझे इश्क
का सर कलम चाहिए…!!!
बहस में दोनों को लुत्फ़ आता रहा,,,
मुझ को दिल,मैं दिल को समझाता रहा…
मैं कौन था पहले कोई पहचानता न था..,
तुम क्या मिले,ज़माने में मशहूर हो गया ।
किसी ने रख दिए ममता भरे दो हाथ…क्या सर पर,
मेरे अन्दर कोई बच्चा…….बिलख कर रोने लगता है.!!
काफ़िला गुजर गया जख्म देकर ।
रास्ता उदास है अब मेरी तरह ।।
इश्क़ बुझ चुका है ।
क्यूंकि हम ज़ल चुके हैं ।।
जाते जाते अपने साथ..
..अपनी खुशबुए भी ले जाते.. ।
..अब जो हवा भी चलती है..
..तो लगता है तुम आये हो.. ।।
मंज़िलें मुझे छोङ गई हैं ।
रास्तों ने संभाल लिया है ।।
जा ज़िदगी तेरी जरूरत नही ।
मुझे हादसो ने पाल लिया है ।।