कभी फुर्सत मिले तो

कभी फुर्सत मिले तो,
अपनी वो कलम भेजवा देना…
जिससे आग,और पानी दोनों निकलते हैं…
कुछ आँख के आंसू,कुछ लहू के रंग टपकते हैं…
देखना था आखिर पन्ने जलते और भिग़ते क्यों नही…”