और कितने इम्तेहान

और कितने इम्तेहान लेगा वक़्त तू ज़िन्दगी मेरी है फिर मर्ज़ी तेरी क्यों|

बुरे भी नहीं थे हम

जब मिलोगे किसी और से तो मान जाओगे, अगर अच्छे नहीं थे तो बुरे भी नहीं थे हम|

बस आज के दिन

बस आज के दिन उनका इंतजार कर लूँ, इसी सोच में तमाम उम्र गुजार दी मैंने !!

बहुत कुछ सोंचा

बहुत कुछ सोंचा,बहुत कुछ था कहना फिर हुआ यू,की लफ्जों ने,चुना खामोश रहना..!!

बदन इतना महंगा भी

बदन इतना महंगा भी न कर लीजिये हुजूर रूह तड़प उठे की घर बदलना है..

अंदर से तो

अंदर से तो कब के मर चुके है हम ए मौत तू भी आजा, लोग सबूत मांगते है..!!!!

ख्वाहिश जली बुझी सी..

एक ख्वाहिश जली बुझी सी.. फिर खाक हुई आहिस्ता-आहिस्ता..!

ज़िंदगी आगे भाग रही है

ज़िंदगी आगे भाग रही है और वक़्त पीछे छूट जा रहा है, और साथ ही छूट रहा है हर वो हक़ तुम्हें याद करने का, तुम्हें सोचने का, तुम्हें जीने का! दुनिया चाहती है हम तुम्हें याद न करें, तुम्हारा नाम न लें, सही कहते हैं… आख़िर चाहती तो तुम भी यही थी!”

ये इनायतें ग़ज़ब की

ये इनायतें ग़ज़ब की , ये बला की मेहरबानी, मेरी ख़ैरियत भी पूछी, किसी और की ज़ुबानी….

काश कोई हम

काश कोई हम पर भी इतना प्यार जताती पिछे से आकर वो हमारी आंखो को छुपाती हम पुछते कौन हो तुम? और वो हस कर खुद को हमारी जान बताती|

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