आँख की छत पे

आँख की छत पे टहलते रहे काले साए
कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया
कितनी दीवाली गईं, कितने दशहरे बीते
इन मुंडेरों पे कोई दीप ना धरने आया|

वास्ता नही रखना

वास्ता नही रखना तो फिर …

मुझ पे नजर क्यूं रखते हो …

मैं किस हाल में जिंदा हूँ …

तुम ये खबर क्यूं रखते हो …

तेरे एहसासों की

तेरे एहसासों की धूप में सुखा लिए मैंने गीले गेशू अपने ,
पर तुम न संजो पाए मेरे हसीन ख्वाबों को आंखों में अपने !!

वक्त नूर को

वक्त नूर को बेनूर बना देता है
छोटे से जख्म को नासूर बना देता है
कौन चाहता है
अपनों से दुर रहना पर वक्त
सबको मजबूर बना देता है॥