तेरी किताब के

तेरी किताब के हर्फ़े, समझ नहीं आते।
ऐ ज़िन्दगी तेरे फ़लसफ़े, समझ नहीं आते।।
कितने पन्नें हैं, किसको संभाल कर रखूँ।
और कौन से फाड़ दूँ सफ़हे, समझ नहीं आते।।
चौंकाया है ज़िन्दगी, यूँ हर मोड़ पर तुमने।
बाक़ी कितने हैं शगूफे, समझ नहीं आते।।
हम तो ग़म में भी, ठहाके लगाया करते थे।
अब आलम ये है, कि.. लतीफे समझ नहीं आते।।
तेरा शुकराना, जो हर नेमत से नवाज़ा मुझको।
पर जाने क्यों अब तेरे तोहफ़े, समझ नहीं आते।।

किसी ने पूछा

किसी ने पूछा कौन याद आता है,
अक्सर तन्हाई में,
हमने कहा कुछ पुराने रास्ते,
खुलती ज़ुल्फे और बस दो आँखें