लाजमी नही है की हर किसी को मौत ही छूकर निकले “”
किसी किसी को छूकर जिंदगी भी निकल जाती है ||
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
लाजमी नही है की हर किसी को मौत ही छूकर निकले “”
किसी किसी को छूकर जिंदगी भी निकल जाती है ||
हर एक लकीर एक तज़ुर्बा है जनाब .. ..
झुर्रियाँ चेहरों पर यूँ ही आया नहीं करती !!
कितने खुबसूरत हुआ करते थे बचपन के वो दिन….
के सिर्फ दो उंगलिया जुडने से दोस्ती फिर शुरू हो
जाती थी….
मुझे भी शुमार करो अब गुनहगारों की फेहरिस्त में,
मैं भी क़ातिल हूँ हसरतों का, मैंने भी ख्वाहिशों को मारा है…।
अब किसी और के वास्ते ही सही,
तेरे मुस्कुराने के अंदाज़ वैसे ही हैं…
ना रास्ता हैं ना मंजिल है बस चला जा रहा हूँ !!
हिम्मतें तो बहुत हैं बस हाथ की लकीरों से मात खा रहा हूँ !!
मैं एक हाथ से सारी दुनिया के साथ लड़ सकता हूँ ,
बस मेरा दुसरा हाथ तेरे हाथ में होना चाहिए !!
उसकी गली का सफर आज भी याद है मुझे…
मैं कोई वैज्ञानिक नहीं था पर मेरी खोज लाजवाब थी…
मैने खत को देखा और रख दिया बिना पढे हुए मै…
जानता हु उसमे भुल जाने का मशवरा होगा…
बिछड़कर फिर मिलेंगे यकीन कितना था,
बेशक ख्वाब ही था मगर हसीन कितना था…