कैसा अजीब रिश्ता है ये…दिल आज धोखे में हैं…
और धोखेबाज आज भी दिल में….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कैसा अजीब रिश्ता है ये…दिल आज धोखे में हैं…
और धोखेबाज आज भी दिल में….
लकीरें मेरे हाथों की एकाएक जगमगाती हैं,
मरे हाथों में जिस लम्हें तेरा हाथ होता हैं…॥
ईश्क में रास्तों की परवाह कौन करता है,
जो इस रास्तें पर चलता है वो बहकता जरूर हैं॥
मेरा बिना खुश रहे तू ज़माने में,
कि याद भी आ ना पाऊँ अनजानें में…॥
इंसान तब बड़ा नहीं होता जब वह बड़ी-बड़ी बातें करने लगता है,
बल्कि तब बड़ा होचा है जब वह छोटी-छोटी बात समझने लगता है…॥
जब जब तेरी जरूरत होती है.. !
..उदासी खूबसूरत होती है.. !!
नदिया का पानी भी खामोश बहता यहाँ
खिली चांदनी में छिपी लाख खामोशियाँ
बारिश की बूंदों की होती कहाँ है जुबां
सुलगते दिलों में है खामोश उठता धुंआ
हम तो अंधेरे में सोने के आदी थे,
और वो बेवफ़ा मेरी कब्र पे दिये जलाने आ गए…!
क्या उस गली में कभी तेरा जाना हुआ
जहां से ज़माने को गुज़रे ज़माना हुआ
मेरा समय तो वहीँ पे है ठहरा हुआ
बताऊँ तुम्हे क्या मेरे साथ क्या क्या हुआ
होने की गवाही के लिए ख़ाक बहोत है।
या कुछ भी नहीं होने का इरादा बहोत है।