वो मेरी आखरी सरहद हो जैसे,
सोच जाती ही नहीं उस से आगे…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
वो मेरी आखरी सरहद हो जैसे,
सोच जाती ही नहीं उस से आगे…
देख ली समंदर की दरियादिली…,
साँसें ले कर…लाश बाहर फेंक दी…।
जब छोड़ गए सब
तब मिला मुझे रब|
आयेंगे तेरी गलियों में चाहे देर क्यू न
हो जाये…
करेंगे मोहब्बत तुझी से चाहे जेल क्यू न
हो जाय
छोड़ तो सकता हूँ मगर छोड़ नहीं पाता उसे..
वो शख्स मेरी बिगड़ी हुई आदत की तरह है..!!!
तेरी चाहत का ऐसा नशा चढ़ा है,
की शायरी हम लिखते है, और दर्द पुरे मेंबर सहते हैं।
सौदेबाजी का हुनर
कोई उनसे सीखे,
गालों का तिल दिखा कर
सीने का दिल ले गयी।
झूठ बोलता होगा चाँद भी..
रुठकर यूँ ही तो नहीं टूट जाते तारे…
किसी को आग में ठंडक,
कोई पानी में जलता है, किसी के पाँव बहके हैं,
कोई घुटनों से चलता है…
उस कुल्हाड़ी के लोहे में उसी का एक टुकडा पिरोया था…
वो पेड़ जब कटा,बहुत रोया था..