अपनों को तनहा

मैंने पत्थरों को भी रोते देखा है झरने के रूप में.. मैंने पेड़ों को प्यासा देखा है सावन की धूप में…! घुल-मिल कर बहुत रहते हैं लोग जो शातिर हैं बहुत… मैंने अपनों को तनहा देखा है बेगानों के रूप मे….!!!!

किसी ने अपना बनाया

किसी ने अपना बनाया, बना के छोङ दिया मुझे गले से लगाया, लगा के छोङ दिया गले से लगके मिले गैरों से वो महफिल मे हमारा हाथ दबाया, दबाके छोङ दिया मेरे सलाम का इस नाज से दिया है जवाब अदब से हाथ उठाया, उठा के छोङ दिया

वो मेरी आखरी

वो मेरी आखरी सरहद हो जैसे, सोच जाती ही नहीं उस से आगे…

आँगन आँगन नहीं होता

वो आँगन आँगन नहीं होता जहाँ बेटियाँ नहीं खेलतीं वो रसोई रसोई नहीं होती जहाँ मांयें रोटियाँ नहीं बेलतीं ।

कैसे पढ़ते हो जनाज़ा

सुनो, कैसे पढ़ते हो जनाज़ा उसका वो लोग जो अंदर से मर जाते है|

मेरे नसीब में

अजीब नींद मेरे नसीब में लिखी है… पलकें बंद होती है… तो दिल जाग जाता है…

वो जब देखेगी

वो जब देखेगी उलझ सा जाऊँगा, नज़रे मिलाऊ या नज़र भर देखू।

सांप बेरोजगार हो गये

किसी ने क्या खूब लिखा है….. सांप बेरोजगार हो गये, अब आदमी काटने लगे

टूटता हुआ तारा

टूटता हुआ तारा सबकी दुआ पूरी करता है.. क्यों के उसे टूटने का दर्द मालूम होता है….

इतनी मोहब्बत दूंगा

हो मेरी, कि इतनी मोहब्बत दूंगा । लोग हसरत करेंगे, तेरे जैसा नसीब पाने को ।.

Exit mobile version