किताब-ए-इश्क से इस मसले का हल पुछो…….!!
जब कोई अपना रूठ जाये तो क्या करें…….??
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
किताब-ए-इश्क से इस मसले का हल पुछो…….!!
जब कोई अपना रूठ जाये तो क्या करें…….??
अब जुदाई के सफ़र को मेंरे आसान करो…..
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो ….
आँखों में छुपाए फिर रहा हूँ,
यादों के बुझे हुए सबेरे।
कैसे चुकाऊं किश्तें ख्वाहिशों की .. मुझ पर तो ज़रुरतों का भी एहसान चढा हुआ है ..!!
ढूँढ़ा है अगर जख्मे-तमन्ना ने मुदावा,
इक नर्गिसे-बीमार की याद आ ही गई है।
लफ्ज़ तो सारे सुने सुनाये है,अब तु मेरी ख़ामोशी में ढुँढ जिक्र अपना..
दिल के टुकड़े टुकड़े करके, मुस्कुरा के चल दिये॥
कभी नूर-ओ-रँग भरे चेहरे से
इन घनी जुल्फोँ का पर्दा हटाओ,जरा हम भी तो देखेँ,
आखिर
चाँद होता कैसा है….!!!
इस तरह छूटा घर मेरा मुझसे…
मैं घर अपने आकर,अपना घर ढूँढता रहा…