वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में,
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नहीं जाता।
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा,
जाते हैं जिधर सब, मैं उधर क्यों नहीं जाता।
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तुझसे नाराज़ होकर
तुझसे नाराज़ होकर कहाँ जाएँगे…
रोएँगे तड़पेंगे फिर लौट आएँगे|
करम इतना सा
करम इतना सा करना मुझपे ए मालिक…
ज़िक्र जब फ़िक्र का हो तो मुझे ही आगे करना…
आग का दरिया हो या समंदर की गहराई….
मैं ही पार करुँगा पहले नहीं पड़ने दूंगा उसपे गम की कोई परछाई…
ये जो तेरा होकर भी
ये जो तेरा होकर भी ना होने का अहसास है…
बस ये अधूरापन ही मुझे जीने नहीं देता|
उम्र भर ख़्वाबों की
उम्र भर ख़्वाबों की मंज़िल का सफ़र जारी रहा,
ज़िंदगी भर तजुरबों के ज़ख़्म काम आते रहे…
इश्क़ की चोट का
इश्क़ की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही,
दर्द कम हो या ज़ियादा हो मगर हो तो सही…
और कितना परख़ोगे
और कितना परख़ोगे तुम मुझे?
क्या इतना काफ़ी नहीं कि मैनें तुम्हें चुना है।
मुझे कहाँ से
मुझे कहाँ से आएगा
लोगो का दिल जीतना …!!
मै तो अपना भी
हार बैठी हूँ..!!
तुम इतने कठिन क्यूँ हो
तुम इतने कठिन क्यूँ हो की मैं तुम्हे समझ नहीं पाता,
थोड़े से सरल हो जाओ सिर्फ मेरे लिए !!
रब के फ़ैसले पर
रब के फ़ैसले पर भला कैसे करुँ शक,
सजा दे रहा है ग़र वो कुछ तो गुनाह रहा होगा !!