चेहरे पर जो अपने दोहरी नकाब रखता हैं,
खुदा उसकी चलाकियों का हिसाब रखता हैं
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
चेहरे पर जो अपने दोहरी नकाब रखता हैं,
खुदा उसकी चलाकियों का हिसाब रखता हैं
बेताब हम भी है.. दर्द -ए -जुदाई की कसम,
रोती वो भी होगी.. नज़रें चुरा चुरा के !
जमीर ही आँख नही मिलाता वरना,
चेहरा तोआईने पर टूट पड़ता है….
गम ऐ बेगुनाही के मारे है,, हमे ना छेडो..
ज़बान खुलेगी तो,,
लफ़्ज़ों से लहू टपकेगा.
उम्मीद से कम चश्मे खरीदार में आए
हम लोग ज़रा देर से बाजार में आए..
तुझे रात भर ऐसे याद किया मैंने…
जैसे सुबह इम्तेहान हो मेरा ।
ये जरूरी तो नहीं कि उम्र भर प्यार के मेले हों
हो सकता है कभी हम तुम अकेले हों.
जिंदा रहने पे तवज्जो ना कोई मिल पाई..
कत्ल होके मै,,,
एक शहर के अखबार में हूँ..
मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम,
मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है !!
आखरी हिचकी तेरे
पहलू में आये
मौत भी मैं
शायराना चाहता हूँ…