घड़ी घड़ी वो हिसाब करने बैठ जाते है…
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जबकि उनको पता है, जो भी हुआ, बेहिसाब हुआ है..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
घड़ी घड़ी वो हिसाब करने बैठ जाते है…
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जबकि उनको पता है, जो भी हुआ, बेहिसाब हुआ है..
बहस में दोनों को लुत्फ़ आता रहा,,,
मुझ को दिल,मैं दिल को समझाता रहा…
इश्क़ बुझ चुका है ।
क्यूंकि हम ज़ल चुके हैं ।।
मंज़िलें मुझे छोङ गई हैं ।
रास्तों ने संभाल लिया है ।।
जा ज़िदगी तेरी जरूरत नही ।
मुझे हादसो ने पाल लिया है ।।
शाम ढलने से पहले चराग हमने
बुझा दिए. . . .
तुझसे ही सिखा है यूँ
दिलो में अँधेरा करना..
बिन धागे की सुई सी है ये ज़िंदगी….. सिलती कुछ नहीं, बस
चुभती जा रही है.
सिलवटों से भरी है तमाम रूह उसकी
एक शिकन भी नहीं है लिबास में जिसके..
जिनके पास इरादे होते है ना।।
उनके पास बहाने नही होते।।
तुम बहोत साल रह लिए अपने,
अब मेरे और सिर्फ मेरे होकर रहो !!
सादगी हो लफ़्ज़ों में…तो यक़ीन मानिये…
इज़्ज़त बेपनाह और दोस्त बेमिसाल मिल जाते हैं….