अब ना करूँगा अपने दर्द को बया किसी के सामने,
दर्द जब मुझको ही सहना है तो तमाशा क्यूँ करना…!!!
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बड़ी मुश्किल से
बड़ी मुश्किल से सीखी थी बेईमानी हमने सब बेकार हो गयी,
अभी तो पूरी तरह सीख भी ना पाए थे की सरकारें ईमानदार हो गयी..
काफ़िर है तो शमशीर पे
काफ़िर है तो शमशीर पे करता है भरोसा,
मोमिन है तो बे-तेग़ भी लड़ता है सिपाही…
बेचैनी खरीदते हैं
बेचैनी खरीदते हैं,बेचकर सुकून,
है इस तरह का आजकल जीने का जुनून।
लाख हुस्न-ए-यकीं
लाख हुस्न-ए-यकीं से बढकर है।।
इन निगाहों की बदगुमानी भी।।
उस एक शब के
उस एक शब के सहारे कट रही है हयात, वो एक शब जो तेरी महफिल में गुजार आये।
आज शाम महफिल सजी थी
आज शाम महफिल सजी थी बददुआ देने की….
मेरी बारी आयी तो मैने भी कह दिया…
“उसे भी इश्क हो” “उसे भी इश्क हो”
पता नही होश मे हूँ..
पता नही होश मे हूँ.. या बेहोश हूँ मैं….
पर बहूत सोच समझकर खामोश हूँ मैं..!!
वो इस तरह
वो इस तरह मुस्कुरा रहे थे , जैसे कोई गम छुपा रहे थे……!
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बारिश में भीग के आये थे मिलने, शायद वो आंसु छुपा रहे थे…!!
हमने जाना के सोच समझ कर
हमने जाना के सोच समझ कर किसी को हाल ए दील बताना……
और ये भी जाना के क्या होता है आखो का समन्दर हो जाना….