हर रोज के मिलने में तकल्लुफ़ कैसा,
चाँद सौ बार भी निकले तो नया लगता है….!!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
हर रोज के मिलने में तकल्लुफ़ कैसा,
चाँद सौ बार भी निकले तो नया लगता है….!!!
ना शौक दीदार का… ना फिक्र जुदाई की,
बड़े खुश नसीब हैँ वो लोग जो…मोहब्बत नहीँ करतेँ
तुझे झूठ बोलना भी हम ने ही सिखाया है ।
तेरी हर बात को सच मान मान कर ।।
सबब वो पूछ रहे हैं उदास होने का
मिरा मिज़ाज नहीं बे-लिबास होने का
मिरी ग़ज़ल से बना, ज़ेहन में कोई तस्वीर
सबब न पूछ मिरे देवदास होने का
जख्म ही देना था तो पूरा जिस्म उसके हवाले था ….!
पर उस जालिम ने जब भी वार किया तो सीधा दिल पर किया …!
आईने से ले नहीं सकता कोई भी इन्तेक़ाम
एक टूटेगा ‘हज़ारों’ को जनम दे जायेगा
मै तरसती रही हर पल उसकी आवाज़ सुनने को
कितनी आसानी से कह दिया उसने वक़्त मिलेगा तो बात कर लेंगे ..
चलो एक बार फिर बुरे बनते है…
जिन्हें
हम पसंद नही,
उनकी गली से फिर गुजरते है
एक बात पूछूं जवाब मुस्कुरा कर देना
मुझे रूला कर खुश तो हो ना ?
ऐ जिन्दगी मेरा हक़ मत छिनना तू क्यों की
वक्त बहुत कुछ छीन चुका हैं….