दौलत की दीवार में तब्दील रिश्ते कर दिये,
देखते ही देखते
भाई मेरा पडोसी हो गया।
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और थोड़ा सा
और थोड़ा सा बिखर जाऊँ ..यही ठानी है….!!!
ज़िंदगी…!!! मैं ने अभी हार कहाँ मानी है….
मेरी मुलाक़ात तुझसे
मेरी मुलाक़ात तुझसे अब तक अधूरी है,
तू पास ही है मेरे, फिर क्यों ये दूरी है….
शीशा रहे बगल में
शीशा रहे बगल में, जामे शराब लब पर,
साकी यही जाम है, दो दिन की जिंदगानी का…
अब तो अपनी परछाईं
अब तो अपनी परछाईं भी ये कहने लगी है ,
मैं तेरा साथ दूँगी सिर्फ उजालों में !!
वो दास्तान मुकम्मल करे
वो दास्तान मुकम्मल करे तो अच्छा है
मुझे मिला है ज़रा सा सिरा कहानी का..
बुझा सका है
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले…..
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता…!!
उसे ज़ली हुई लाशें
उसे ज़ली हुई लाशें नज़र नही आती
मग़र वह सुई से धागा गुज़ार देता है
ज़ख्म इतने गहरे हैं
ज़ख्म इतने गहरे हैं इज़हार क्या करें; हम खुद निशान बन गए वार क्या करें; मर गए हम मगर खुलो रही आँखें; अब इससे ज्यादा इंतज़ार क्या करें!
मीठी यादों के साथ
मीठी यादों के साथ गिर रहा था,
पता नहीं क्यों फिर भी मेरा वह आँसु खारा था…