कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई|
जरा सी मोहब्बत क्या पी ली
कि जिन्दगी अब तक लड़खड़ा रही है….
जिंदगी मेरे कानो मे अभी होले से कुछ कह गई,
उन रिश्तो को संभाले रखना जिन के
बिना गुज़ारा नहीं होता|
जो अंधेरे की तरह डसते रहे ,अब उजाले की कसम खाने लगे
चंद मुर्दे बैठकर श्मशान में ,ज़िंदगी का अर्थ समझाने लगे!!
यूँ असर डाला है मतलबी लोगो ने दुनियाँ पर,हाल भी पूछो तो लोग समझते है की कोई काम होगा…
आसाँ कहाँ था कारोबार-ए-इश्क
पर कहिये हुजूर , हमने कब शिकायत की है ?
हम तो मीर-ओ-गालिब के मुरीद हैं
हमेशा आग के दरिया से गुजरने की हिमायत की है !
मेरी ज़िन्दगी को जब मैं करीब से देखता हूँ
किसी इमारत को खड़ा गरीब सा देखता हूँ
आइने के सामने तब मैं आइने रखकर
कहीं नहीं के सामने फिर कुछ नहीं देखता हूँ|
नींद तो आने को थी पर दिल पुराने किस्से ले
बैठा
अब खुद को बे-वक़्त सुलाने में कुछ वक़्त लगेगा|
बिना मतलब के दिलासे भी नहीं मिलते यहाँ ,
लोग दिल में भी दिमाग लिए फिरते हैं |
मुझसे नफरत ही करनी है तो,इरादे मजबूत रखना।।
जरा सा भी चुके तो मोहब्बत हो जायेगी|