आसाँ कहाँ था

आसाँ कहाँ था कारोबार-ए-इश्क
पर कहिये हुजूर , हमने कब शिकायत की है ?

हम तो मीर-ओ-गालिब के मुरीद हैं
हमेशा आग के दरिया से गुजरने की हिमायत की है !

मेरी ज़िन्दगी को

मेरी ज़िन्दगी को जब मैं करीब से देखता हूँ
किसी इमारत को खड़ा गरीब सा देखता हूँ
आइने के सामने तब मैं आइने रखकर
कहीं नहीं के सामने फिर कुछ नहीं देखता हूँ|

लड़ के थक चुकी हैं

लड़ के थक चुकी हैं जुल्फ़ें तेरी

छूके उन्हें आराम दे दो,

क़दम हवाओं के भी तेरे गेसुओं से

उलझ कर लड़खड़ाने लगे हैं!