ना शाख़ों ने जगह दी ना हवाओ ने बक़शा,
वो पत्ता आवारा ना बनता तो क्या करता…?
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आसाँ कहाँ था
आसाँ कहाँ था कारोबार-ए-इश्क
पर कहिये हुजूर , हमने कब शिकायत की है ?
हम तो मीर-ओ-गालिब के मुरीद हैं
हमेशा आग के दरिया से गुजरने की हिमायत की है !
मेरी ज़िन्दगी को
मेरी ज़िन्दगी को जब मैं करीब से देखता हूँ
किसी इमारत को खड़ा गरीब सा देखता हूँ
आइने के सामने तब मैं आइने रखकर
कहीं नहीं के सामने फिर कुछ नहीं देखता हूँ|
नींद तो आने को थी
नींद तो आने को थी पर दिल पुराने किस्से ले
बैठा अब खुद को बे-वक़्त सुलाने में कुछ वक़्त लगेगा|
बिना मतलब के
बिना मतलब के दिलासे भी नहीं मिलते यहाँ ,
लोग दिल में भी दिमाग लिए फिरते हैं |
बहुत अन्दर तक
बहुत अन्दर तक तबाही मचाता है…..
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वो आंसू जो आँखों से ‘बह’ नहीं पाता है ….!!!
लड़ के थक चुकी हैं
लड़ के थक चुकी हैं जुल्फ़ें तेरी
छूके उन्हें आराम दे दो,
क़दम हवाओं के भी तेरे गेसुओं से
उलझ कर लड़खड़ाने लगे हैं!
इतनी बुरी भी नही
मोहब्बत इतनी बुरी भी नही जितना मेने सुना था……
दर्द मोहब्बत नही देती ,मोहब्बत करने वाले देते हे..!!!
बस तू सामने बैठ
बस तू सामने बैठ मुझे दीदार करने दे,
बातें तो हम खुद से भी कर लिया करते हैं।
शायरी के शोंक ने
शायरी के शोंक ने इतना तो काम कर दिया,
जो नहीं जानते थे उनमें भी बदनाम कर दिया।।