बस यही सोच कर हर मुश्किलों से लड़ता आया हूँ…!
धूप कितनी भी तेज़ हो समन्दर नहीं सूखा करते…।।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बस यही सोच कर हर मुश्किलों से लड़ता आया हूँ…!
धूप कितनी भी तेज़ हो समन्दर नहीं सूखा करते…।।
मुड़कर नहीं देखता अलविदा के बाद ,
कई मुलाकातें बस इसी गुरुर ने खो दी।
शिकवा तो बहुत है मगर शिकायत नहीं कर सकते
मेरे होठों को इज़ाज़त नहीं तेरे खिलाफ बोलने की…
शिकायत तुम्हे वक्त से नहीं खुद से होगी,
कि मुहब्बत सामने थी, और तुम दुनिया में उलझी रही…
हमने दिया है, लहू उजालों को.
हमारा क़र्ज़ है इस दौर के सवेरों पर..
हजारो अश्क मेरे आँखो की हिरासत में थे
फिर तेरी याद आई और उन्हें जमानत मिल गई|
ज़िन्दगी हो तो कई काम निकल आते है
याद आऊँगा कभी मैं भी ज़रूरत में उसे|
इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त
या ग़म न दिया होता, या दिल न दिया होता|
चीर के ज़मीन को मैं उम्मीदें बोता हूँ मैं किसान हूं चैन से कहाँ सोता हूँ|
इस शहर में मजदूर जैसा दर बदर कोई नहीं
सैंकड़ों घर बना दिये पर उसका कोई घर नहीं|