वो तो बस झूटी तसल्ली को कहा था तुम से
हम तो अपने भी नहीं, ख़ाक तुम्हारे होते
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
वो तो बस झूटी तसल्ली को कहा था तुम से
हम तो अपने भी नहीं, ख़ाक तुम्हारे होते
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगाहमारा क़ुसूर निकलेगा
ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई,
जो आदमी भी मिला, बन के इश्तिहार मिला।
मकान बन जाते है कुछ हफ्तों में,
ये पैसा कुछ ऐसा है…और घर टूट जाते है चंद पलो में, ये पैसा ही कुछ ऐसा है..।।
फिरदोस-ए-जन्नत में लाख हूरों का तस्सवुर
सही….
इक इंसान के इश्क़ से निकलु तो वहाँ का भी
सोचूँगा ….
याद ही नहीं रहता कि लोग
छोड़ जाते हैं.आगे देख रहा था, कोई पीछे से चला गया.
तेरा आधे मन से मुझको मिलने आना,
खुदा कसम मुझे पूरा तोड़ देता है…
आप मुझ से, मैं आप से गुज़रूँ….रास्ता एक यही निकलता है…..
चलो तोड़ते हैं आज मोहब्बत के सारे के उसूल अपने,
अब से बेवफाई और दगाबाज़ी दोनों हम करेंगे!
यूँ तो मशहूर हैं अधूरी मोहब्बत के, किस्से बहुत से…!!
मुझे अपनी मोहब्बत पूरी करके, नई कहानी लिखनी