एक रोज तय है खुद तब्दील ‘राख’ में होना… उम्रभर फिर क्यों औरों से, आदमी जलता है…!
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दुआ कोन सी
दुआ कोन सी थी हमें याद नहीं, बस इतना याद है दो हथेलियाँ जुड़ी थी एक तेरी थी एक मेरी थी..
क्या खबर तुमने
क्या खबर तुमने कहाँ किस रूप में देखा मुझे, मै कहीं पत्थर,कहीं मिट्टी और कहीं आईना था..
महफ़िल में हँसना
महफ़िल में हँसना हमारा मिजाज बन गया, तन्हाई में रोना एक राज बन गया, दिल के दर्द को चेहरे से जाहिर न होने दिया, बस यही जिंदगी जीने का अंदाज बन गया।
बहुत अजीब हैं
बहुत अजीब हैं ये बंदिशें मुहब्बत की, न उसने क़ैद में रखा न हम फ़रार हुए।
खुद बैठा बैठा
खुद बैठा बैठा मैं यूँ ही गुम हो जाता हूँ! मैं अक्सर मैं नही रहता तुम हो जाता हूँ!!
सूरज ढलते ही
सूरज ढलते ही रख दिये उस ने मेरे होठो पर होठ … ।। दोस्तों इश्क का रोजा था और गजब की इफ्तारी थी … !!
ज़माने पर भरोसा
ज़माने पर भरोसा करने वालों..भरोसे का ज़माना जा रहा है..!
मुझे यक़ीन है
मुझे यक़ीन है मोहब्बत इसी को कहते हैं, के ज़ख्म ताज़ा रहे और निशाँ चला जाये …!!!
यही तय जानकर
यही तय जानकर कूदो, उसूलों की लड़ाई में, कि रातें कुछ न बोलेंगी, चरागों की सफाई में…