जाने क्यूँ आजकल

जाने क्यूँ आजकल, तुम्हारी कमी अखरती है बहुत
यादों के बन्द कमरे में, ज़िन्दगी सिसकती है बहुत
पनपने नहीं देता कभी, बेदर्द सी उस ख़्वाहिश को
महसूस तुम्हें जो करने की, कोशिश करती है बहुत..

कितना प्यार है

कितना प्यार है तुमसे, वो लफ्ज़ों के सहारे कैसे बताऊँ,
महसूस कर मेरे एहसास को, अब गवाही कहाँ से लाऊँ।

तन्हा सा हो गया हूँ

तन्हा सा हो गया हूँ तेरे शहर में
बे सुध सा हो गया हूँ तेरे शहर में
लोगो की भीड़ में तुझको खोजता
मैं खुद ही खो गया हूँ तेरे शहर में दर्पण

तू कितनी भी

तू कितनी भी खूबसूरत क्यूँ ना हो ए ज़िंदगी,
खुशमिजाज़ दोस्तों के बगैर तू अच्छी नहीं लगती।