बात मिज़ाज़ो की है कि गुल कुछ नही कहते
वरना कभी कांटों को मसलकर दिखलाइये..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बात मिज़ाज़ो की है कि गुल कुछ नही कहते
वरना कभी कांटों को मसलकर दिखलाइये..
आईने का जाने कब गुरुर बढ जाए …
पत्थरों से भी दोस्ती निभाना जरुरी है..
उम्र का बढ़ना तो दस्तूर- ए जहाँ है
मगर
महसूस ना करो तो उम्र बढ़ती कहाँ है ?
मेरे खेत की मिट्टी से पलता है तेरे शहर का पेट
मेरा नादान गाँव अब भी उलझा है कर्ज की किश्तों में..
दर्द आसानी से कब ‘पहलू’ बदल के निकला
आँख का तिनका बहुत आँख ‘मसल’ के निकला..
कितनीं मोहब्बत हैं तुमसे कोई सफाई नहीं देंगें…
साये की तरह साथ रहेंगे पर दिखाई नहीं देंगें……!!!!!!
मुकम्मल हो ही नहीं पाती कभी तालीमे मोहब्बत…
यहाँ उस्ताद भी ताउम्र एक शागिर्द रहता है…!!
बटुए को कहाँ मालूम पैसे उधार के हैं…
वो तो बस फूला ही रहता है अपने गुमान में।।
ऐसा तो कभी हुआ नहीं,
गले भी मिले, और छुआ नहीं!
मेरी नरमी को मेरी कमजोरी न समझना….
ऐ नादान,
सर झुका के चलता हूँ तो सिर्फ ऊपर वाले के खौफ से…।