उम्मीदों के ताले पड़े के पड़े रह गए,
तिज़ोरी उम्र की, ना जाने कब ख़ाली हो गई !!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
उम्मीदों के ताले पड़े के पड़े रह गए,
तिज़ोरी उम्र की, ना जाने कब ख़ाली हो गई !!
संदेशा प्रेम का देता फिरता है वो
घर दिलों में सभी के ही बना देता है!
इतनी चाहत से न देखो भरी महफ़िल में मुझे
वो हरेक बात का अफसाना बना देता है!
मुश्किलें आयीं मगर लौट गयीं उलटे पाँव
कोई ऐसा भी है जो मुझको दुआ देता है!
सिर्फ पछतावे के कुछ हाथ नहीं है आता
वक़्त बेकार में जो अपना गँवा देता है!
उलझा के रख दिया है किसी ने जवाब को सीधा सा था सवाल….प्यार करते हो या नहीं…
तुम दूर बहुत दूर हो मुझसे ये तो जानता हूँ मैं,..!!
पर तुमसे करीब मेरे कोई नही है बस ये बात तुम याद रखना..!!
मुझ में बेपनाह मुहब्बत के सिवा कुछ भी नही,
तुम अगर चाहो तो मेरी साँसो की तलाशी ले लो..
हाल पूछते नहीं ये बे-वफ़ा दुनिया जिंदा लोगों का,
चले आते हैं तैयार हो कर जनाज़े पे बारात की तरह..
ख्वाहिश सिर्फ यही है की..
जब मैं तुझे याद करु तू मुझे महसूस करे….!!!!